रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखीमपुर खीरी। हम सभी जानते है कि यूपी के सबसे बड़े जनपद लखीमपुर खीरी को चीनी का कटोरा कहा जाता है। यहां का अधिकांश किसान गन्ने की फसल पर निर्भर है और गन्ने की फसल को ही प्रथम वरीयता देता है। मगर धीरे धीरे गन्ना भुगतान से परेशान किसानों का मोह गन्ने की खेती से भंग होता दिखाई दे रहा है तो वहीं किसान कई अन्य फसलों में हाथ आजमाने में जुटे है।
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जिसमें सबसे ज्यादा किसान केले की फसल को वरीयता देकर उस पर जोर आजमाइश कर रहा है। किसानों द्वारा बताया गया कि गन्ने की खेती को छोड़कर केले की फसल को इस लिए लगाया क्योंकि केले की फसल में गन्ने से कई ज्यादा गुना मुनाफा है तो वहीं केले की फसल को लेने के लिए काश्तकार स्वयं खेतों तक आते है और गाड़ी में फसल लादने के तुरंत बाद भुगतान कर देते है। जिससे केले की फसल ज्यादा कारगर साबित हो रही है मगर इस बार केले की फसल ने भी किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है। क्योंकि पिछले बार केले का रेट ₹2000 से ₹2500 प्रति कुंतल था जिससे किसानों को ज्यादा मुनाफा हुआ।
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पिछले साल का रेट देखकर इस बार किसानों ने भारी मात्रा में केले की फसल को उगाया मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। किसानों द्वारा मेहनत कर उगाई गई केले की फसल इस बार कोई देखना भी पसंद नहीं कर रहा है। जहां पिछली बार केला ₹2500 प्रति कुंतल बिका तो वहीं इस बार वहीं केला ₹400 से ₹500 प्रति कुंतल तक भी कोई नहीं ले रहा है। केले का उचित मूल्य न मिल पाने के कारण किसानों के माथे पर चिंता की सिमटन साफ तौर पर देखी जा सकती है। घटिया रेट मिलने की वजह से कई किसानों ने तो खड़ी केले की फसल को जोत दिया और उन्होंने बताया कि केले का भाव तो इस हद तक गिर गया है कि अब तो लागत निकालना ही मुश्किल है। किसानों ने सरकार से मांग की है कि मेहनत कर किसानों द्वारा उगाई गई केले की फसल का उचित मूल्य दिया जाए ताकि केले की खेती को और बढ़ावा मिल सके। यही केला बाजार में 40 से 50 रुपए दर्जन बिक रहा है तो वहीं किसानों को केले की फसल का उचित मूल्य नहीं दिया जा रहा है।
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