रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखीमपुर खीरी: वैसे तो उत्तरप्रदेश के सबसे बड़े जनपद लखीमपुर खीरी को चीनी का कटोरा कहा जाता है, क्योंकि यहां अधिकांश किसान गन्ने की खेती पर निर्भर है मगर धीरे-धीरे गन्ना किसानों को चीनी मिलों द्वारा समय से भुगतान न किए जाने से यहां के किसानों का गन्ने की खेती मोह भंग होने लगा और वह दूसरी खेती की और ध्यान आकर्षित करने लगे। जिसमें सर्वाधिक किसानों ने गन्ने की खेती को छोड़कर केले की खेती को प्रथम वरीयता दी, क्योंकि बीते सालों में केले की खेती करने वाला किसान मुनाफे में देखा गया। व्यापारी स्वयं केले की फसल तक जाता और फसल को कटवाकर गाड़ी में लोड करवाता साथ में 2000 से लेकर 2500 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से तुरंत भुगतान कर देता। यही कारण रहा कि लखीमपुर खीरी जिले में अधिकांश किसानों ने इस बार भी केले की फसल को लगाया मगर किसानों की मेहनत इस बार रंग नहीं लाई। क्योंकि जो केले कि फसल बीते वर्षों में 2000 से लेकर 2500 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से बिकी वही फसल इस बार मात्र 300 से 400 रुपए प्रति कुंतल की हिसाब से भी बिकने में लाले लग रहे है।
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निघासन निवासी किसान मनोज वर्मा ने पिछले वर्ष तीन एकड़ केले की फसल लगाई थी और इस बार भी दो एकड़ केले की फसल लगाई। केले की गिरते भाव को देखते हुए शुक्रवार को मनोज वर्मा इस बार लगाई गई दो एकड़ केले की फसल को ट्रैक्टर से जोत दिया। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष लगाए गए केले की फसल तैयार खड़ी है मगर उसका कोई खरीददार नहीं मिल रहा है। जिस फसल का कोई मोल न हो उसके लिए मेहनत करना बेकार है। किसान मनोज वर्मा ने यह भी कहा कि सरकार को केले की फसल लगाने वाले किसानों की तरफ भी देखना चाहिए। क्योंकि फसल का भाव न मिलने से बेबस किसान आए दिन केले की फसल को जोतकर नष्ट करते हुए देखे जा रहे है और ऐसे में किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
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