रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
मोबाइल का युग। आज हम देख रहे है कि मोबाइल के इस युग ने इस तरह से अपने पैर पसार लिए है मानो मोबाइल के बिना जिंदगी अधूरी है और आज का इंसान मोबाइल की दुनिया में ही मस्त रहकर उसे ही अपना मित्र, साथी बना लिया है। मगर क्या कभी हमने ये सोचा था कि मोबाइल का युग इस तरह से आएगा कि हर आम आदमी के जेब में कुछ हो या न हो मगर मोबाइल जरूर होगा। इसका मुख्य कारण यह भी है कि लोग काफी एडवांस हो गए और उन्हें एडवांस बनाया इसी मोबाइल ने क्योंकि मोबाइल पर हम अगर कुछ मामलों में खराब है तो कुछ मामलों में अच्छा भी है।
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जब मोबाइल का युग नहीं था
जब मोबाइल का युग नहीं था तो लोग आपस में घंटों बैठकर बातें करते थे और एक दूसरे दुख दर्द को साझा करते थे। जहां आज कल लोग झट से वॉट्सएप, फेसबुक या अन्य सोशल फ्लैटफॉर्म से झट से संदेश भेज देते है तो वहीं पहले लोग चिट्ठियां लिख का अपनी बात दूसरे तक पहुंचाते थे। चिट्ठियाँ लिखने में एक सच्चा इमोशन होता था और उसका जवाब आने का इंतजार किया जाता था तो वहीं इंतज़ार में भी प्यार हुआ करता था।
पहले लोग सुबह जल्दी उठते, खेतों, दुकानों या काम पर समय पर जाते। बच्चों को खेल में और बड़ों को साथ बैठने में मज़ा आता था। कोई “स्क्रीन टाइम” नहीं था, सिर्फ “क्वालिटी टाइम” था। मोहल्ले की चौपालें, त्योहारों पर मिलना-जुलना, हर कोई एक-दूसरे की ख़बर रखता था। कोई “ऑनलाइन स्टेटस” नहीं, लेकिन “दिल से कनेक्शन” था। बच्चे अनुभव से सीखते थे, न कि सिर्फ YouTube से और बुजुर्ग ज्ञान का स्रोत थे।
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आज जब मोबाइल का युग है तब
धीरे धीरे जब मोबाइल की दुनिया ने पैर पसारने शुरू किए तो लोगों की जानकारी बढ़ी और इंसान जागरूक होने लगा मगर वह अपना सुकून खोने लगा। जहां पहले इंसान लोगों के साथ बैठकर खुलकर हंसी ठिठोली किया करता था तो वहीं अब इंसान की मुस्कान सिर्फ इमोजी में कैद होकर रह गई है। रिश्तों की तो एहमियत धीरे धीरे कम होती जा रही है क्योंकि आज के इस युग में रिश्तों की एहमियत “लास्ट सीन” और “ब्लू टिक” में मापे जाते हैं। जहां आज मोबाइल के युग ने हमें सुविधा, कनेक्शन और जानकारी दी है तो वहीं सादगी, धैर्य और असली भावनाएं को हमसे छीन भी लिया है। इंसान अपने परिवार के साथ तो बैठा है मगर मस्त मोबाइल की स्क्रीन पर है। कई लोगों के बीच में बैठकर pubg गेम को खेलने के लिए इसी मोबाइल ने कई बातों को लोगों के दिलों में ही दफन कर दिया है। आज का इंसान डिजिटल दुनिया में तो आगे बढ़ गया है, लेकिन इंसानियत की दुनिया में पीछे रह गया है। जरूरत है थोड़ा मोबाइल नीचे रखने की, और थोड़ा खुद से मिलने की।
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