लखनऊ। गन्ना विकास विभाग ने गन्ने की सूखी पत्तियों को खेत में ही डी-कम्पोज किया जाना सर्वाधिक हितकर बताया है। विभाग ने प्रदेश में गन्ना उत्पादक जिलों के समस्त किसानों को जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं। यह स्पष्ट है कि गन्ने की सूखी पत्तियों को जलाने से प्रदूषण बढ़ता है तथा पर्यावरण को नुकसान होता है साथ ही मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित होती है, इसलिये गन्ना किसान, गन्ना कटाई के उपरान्त सूखी पत्ती एवं फसल अवशेषों को जलाने की अपेक्षा ट्रैश मल्चर एवं एम.वी.प्लाऊ का उपयोग कर गन्ने की सूखी पत्तियों एवं फसल अवशेष का प्रबंधन अवश्य करें। फसल अवशेषों के उपयोग से मिटटी के पोषक तत्व वापस मिट्टी में मिल जाते हैं और खेतों की मिटटी अधिक उपजाऊ बनी रहती है।
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गन्ना आयुक्त ने प्रदेश के सभी उप गन्ना आयुक्तों, जिला गन्ना अधिकारियों एवं चीनी मिलों को कृषक गोष्ठी एवं कृषक मेला, पम्फलेट, वॉल पेंटिंग, समाचार पत्रों के माध्यम से किसानों को जागरूक करने तथा फार्म मशीनरी बैंकों के माध्यम से रैटून मैनेजमेंट डिवाइस (R.M.D.) ट्रैश मल्वर एवं एम.वी.प्लाऊ उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया है। गन्ने की सूखी पत्तियों से किया गया ट्रैश मल्चिंग गन्ने की पैदावार बढ़ाता है, साथ ही मिट्टी की उर्रवरता को भी मजबूत बनाता है।
यह भी उल्लेखनीय है कि विभागीय प्रयासों के फलस्वरूप गत वर्षों के सापेक्ष इस वर्ष गन्ने की सूखी पत्तियों एवं अवशेषों को जलाए जाने की घटनाएं अभी संज्ञानित नही हैं। प्रदेश में कहीं भी गन्ने के सूखी पत्ती जलाने की घटना प्रकाश न आये, ऐसा प्रयास विभाग के कार्मिक व अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए।
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