रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
निघासन खीरी। क्षेत्र के ग्राम झोलहुपुरवा में होने वाला ऐतिहासिक झोलहू बाबा मेले का आगाज होने वाला है। यहां 21 नवंबर को ताजिया चौक पर आएंगे और 22 नवंबर से मेले की शुरुआत होगी। मेले में विभित्र प्रकार की दुकानें सजाई जाती है तथा इस मेले में अधिकांश लोग मन्नतें मांगने जाते हैं। मन्नतें पूरी होने पर लोग वहां चादर तथा ताजिये चढ़ाते है। यह मेला करीब 200 साल पुराना बताया जाता है। मेले में झूले, डांस पार्टी व खिलौने की दुकानें आकर्षण का केंद्र बनती है। यह मेला पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था के बीच चलता है। रकेहटी के मजरा झोलहू पुरवा में एतिहासिक प्रसिद्ध 200 वर्ष पुराना झोलहू बाबा का मेला प्रत्येक माह दिसंबर में ही चालू होता है।
मेले में लगा पीपल का पेड़ भी 200 वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है। उसी के नीचे झोलहू बाबा की मजार बनी हुई है। जहां पर श्रद्धालु माथा टेकने जाते हैं और श्रद्धा से चादर तथा ताजिया चढ़ाते है। इस मेले में लखीमपुर खीरी सहित अन्य जनपदों से विभिन्न प्रकार की दुकानें सजाई जाती है। जहां पर हजारों की संख्या में दर्शक मेले का आंनद लेने जाते हैं। मेले में झूले, डांस पार्टी, मिष्ठान भंडार, चाट, खिलौने, रेवड़ी, व कपड़ों आदि की दुकानें सजती है। मेला ठेकेदार रामविलास गुप्ता ने बताया कि 200 वर्ष पहले की बात है, इस इलाके में हैजा जैसी महामारी फैली थी। इस महामारी से जानवर सहित इंसान भी चपेट में आ गये थे। धीरे-धीरे इस महामारी से गांव की जनसंख्या कम होने लगी, एक दिन एक बाबा वहां से गुजरे और इस गांव की महामारी को देखकर वह दंग रह गये तथा इससे बचने के लिए गांव वालों को उपाय बताया उस उपाय से बाबा का आशीर्वाद लोगों को मिलने लगा। बाबा ने वहीं गांव के निकट बना तालाब जो झोलहू बाबा तालाब के नाम से प्रसिद्ध है। उस तालाब में बाबा ने एक बार नहाया उसके बाद गांव वालों को उसी तालाब में नहाने को कहा। बाबा की बात मानकर लोग उस तालाब में नहाने लगे। धीरे-धीरे लोग बिमारी से दूर हो गये और पूरा गांव इस महामारी से बच गया। बाबा वहीं पेड़ के नीचे रहते थे। अंत में बाबा पंचतत्व में विलीन हो गये। उसके बाद बाबा के कहने के अनुसार आज भी झोलहू बाबा के नाम से मेला लगाया जाता। पांच दिन तक ताजिया रखे जाते हैं और अंतिम दिन ताजियों को सुपुर्दे खाक कर दिया जाता है तभी से झोलहू बाबा मेले की मान्यता चली आ रही है।
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झोलहू बाबा मेले में उमड़ेगी हजारों की भीड़, 200 वर्ष पुरानी परंपरा आज भी बरकरार।।









