लखीमपुर खीरी। सरयू नदी के किनारे, निघासन तहसील मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित बौधिया कलां गांव के पास खेरागढ़ जंगल में एक रहस्यमयी गुफा और किले के अवशेष आज भी इतिहास की गूंज सुनाते हैं। इसी जंगल में मौजूद हैं रामदास बाबा का स्थान, जिन्हें लोग आज भी श्रद्धा से पूजते है और उनकी शक्ति व महिमा का बखान लोगों की जुबां से अक्सर सुनने को मिलता है।
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इसी जंगल में रामदास बाबा ने समाज के कल्याण हेतु एक सात कोठियों से जुड़ी मिट्टी की सुरंगों का निर्माण कराया था, जो आज भी सुरक्षित हैं। इन सुरंगों में बाबा रामदास प्रतिदिन हवन-पूजन कर भगवान का ध्यान करते थे। यहां अब धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं और गुफा के समीप बहती पवित्र सरयू नदी इस स्थान की आध्यात्मिकता को और भी बढ़ावा देती है।
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द्वापर युग का किला और रुक्मणी का मंदिर
खेरागढ़ जंगल का यह क्षेत्र कभी कुंदनपुर या विदर्भ देश के नाम से प्रसिद्ध था। कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहां राजा भीष्म की राजधानी थी। आज भी इस किले के अवशेष एक बड़े टीले के रूप में देखे जा सकते हैं। राजमहल से दो किलोमीटर दूर स्थित काली माता मंदिर में रुक्मणी पूजा करने जाया करती थीं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं से रुक्मणी का हरण कर विवाह रचाया था। इस मंदिर के पास ही भगवान शंकर का प्राचीन मंदिर भी स्थित है।
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क्षेत्रवासियों के अनुसार रुक्मणी के भाई शिशुपाल ने जब यह सुना कि उनकी बहन का हरण हुआ है, तो क्रोध में आकर उन्होंने शिवलिंग पर तलवार से प्रहार किया था। आज भी उस शिवलिंग पर चोट के निशान देखे जा सकते हैं।
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