रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखनऊ। यूपी में साल 2007 विधानसभा चुनाव का जब बिगुल बजा था तो चप्पे-चप्पे पर केवल लोगों की जुबां पर एक ही नाम था और एक ही चुनाव निशान सबके दिल पर बसा था और एक ही पार्टी का डंका बजता था। उस समय लोगों की जुबां से एक ही नारा सुनाई दे रहा था ” ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा” और ये नारा देने वाली नेता थी यूपी की पूर्व सीएम व बसपा सुप्रीमो मायावती जिनकी बहुजन समाज पार्टी का तब यूपी में नाम चलता था।
आलम तो ये था कि साल 2007 में जब मायावती ने सीएम की कुर्सी संभाली तो विधानसभा की 403 सीटों में से 206 सीटों पर इनका ही राज हुआ करता था। विपक्षी दलों के पास भी इनका कोई तोड़ नहीं था जिसके कारण मायावती की नजर पीएम की कुर्सी पर थी, उनके समर्थक नारा लगाते थे कि “लखनऊ जीत लिया अब दिल्ली की बारी है” लेकिन फिर वक्त की चाल कुछ ऐसी पलटी कि केंद्र की कुर्सी पर बीजेपी विराजमान हो गई और आने वाले सालों में बसपा पार्टी कही गायब सी हो गई। अब तक मायावती का नाम पूरे यूपी में गूंजता था वो धीरे धीरे गायब सी हो गई। 2022 विधानसभा चुनाव में जब बसपा चुनावी मैदान में उतरी तो सिर्फ एक सीट ही जीत पाई और 2024 लोकसभा चुनाव में तो हाल इतना खराब रहा कि बसपा पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई। ऐसे में सवाल ये उठता है कि बीजेपी के राज में ऐसा क्या हुआ कि बसपा अपने अंत पर आ गई। खुद को दलितों का मसीहा बताने वाली मायावती की माया अचानक खत्म कैसे हो गई?
दरअसल 2009 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने किसानों के 60 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज माफ कर दिया था। इससे पहले कांग्रेस सरकार 100 दिनों के रोजगार की गारंटी के लिए मनरेगा जैसी योजना लागू कर चुकी थी। इससे कांग्रेस पार्टी को यूपी के साथ-साथ देश भर में फायदा हुआ और 206 सीटें जीतकर कांग्रेस देश भर की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। यूपी में कांग्रेस 9 सीटों से 21 पर पहुंची और उसका वोट प्रतिशत भी 6 प्रतिशत बढ़ा जबकि मायावती मात्र 20 सीटें ही जीत पाई। 2012 में मायावती पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे जिससे बसपा की सीट 206 से घटकर मात्र 80 सीटे ही जीत पाई और सपा ने 224 सीटों पर अपना कब्जा जमाया।
उसके बाद मायावती फिर कभी यूपी की सत्ता में नहीं लौटी। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद मायावती के दलित वोटर भी उनका साथ छोड़ते चले गए। 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता नहीं खुला और 2017 विधानसभा चुनाव में बसपा मात्र 19 सीटें ही जीत पाई। 2019 लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन करने से मायावती 10 लोकसभा सीटें जीत पाई और बसपा का वोट शेयर भी घट गया। 2024 लोकसभा चुनाव में मायावती की बसपा पार्टी का खाता तक नहीं खुला अब देखना यह होगा कि अगले विधानसभा चुनाव में मायावती के हाथी की चिंघाड़ सुनने को मिलती है या नहीं ये भी समय के गर्भ में है।
आखिर यूपी से अचानक कैसे समाप्त हो गया मायावती का राज? वजह जानकर आप भी चौंक जाएंगे।
By दीप शंकर मिश्र"दीप":- संपादक
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