रिपोर्ट:- शरद मिश्रा”शरद”
निघासन खीरी: इलाके के लंघनियापुरवा गांव के बाशिदे दस सालों से ज्यादा समय से निकास की समस्या से जूझ रहे हैं। इस गांव से निकलने के रास्ते पर नाला बहता है। इसकी वजह से दो हिस्सों में बंटे इस गांव के लोगों को तीन किलोमीटर का ज्यादा चक्कर लगाना पड़ता है। इस नाले पर बनी पुलिया पंद्रह साल पहले टूट गई थी। इसके बाद किसी ने इसकी सुध नहीं ली। नाले के दक्षिण हिस्से में रहने वाले गांव के लोगों को कच्ची पगडंडी जैसा रास्ता मुहैया है। वहां न चारपहिया गाड़ी जा सकती है और न एंबुलेंस। स्कूली बच्चों तक को दिक्कत होती है। निघासन ब्लाक की बरोठा ग्राम पंचायत के लंघनियापुरवा गांव को बीच में बहने वाले बनबसा नाले ने दो हिस्सों में बांट दिया है। नाले के उत्तर रहने वाले लोग तो बरोठा गांव से जुड़े रहते हैं। उनको सारी सुविधाएं मुहैया हो जाती हैं लेकिन दक्षिणी हिस्से में रहने वाले लोगों को समस्याएं झेलते हुए सालों हो गए। यहां से निघासन पहुंचने का रास्ता तीन किलोमीटर है लेकिन यह तब है जब नाले पर पुलिया बनी हो। पुलिया न होने से इन लोगों को करमूपुरवा और झंडी होते हुए चार किलोमीटर का ज्यादा चक्कर लगाना पड़ता है।
महज पैदल चलने भर का है रास्ताः
लंघनियापुरवा गांव के दक्षिणी हिस्से तक पहुंचने के लिए महज पैदल, साइकिल या दोपहिया गाड़ी ले जाने भर का रास्ता है। चारपहिया गाड़ी जाने का रास्ता न होने से एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी तक यहां पहुंचना मुश्किल होता है। यहां के लोग बताते हैं कि करीब पचास साल पहले इस नाले पर पुलिया बनी थी जो जर्जर होकर करीब पंद्रह साल पहले टूट गई। इसके बाद वे हर बार पुलिया बनने की आस में रहते हैं। वादे तो होते हैं लेकिन चुनाव बाद कोई पूछने तक नहीं आता।
पुल नहीं तो पोल नहीं की घोषणा
लंघनियापुरवा गांव से निकास न होने से यहां के लोग स्वास्थ्य, शिक्षा और सरकारी योजनाओं ने वंचित रह जाते हैं। अपने साथ होने वाले सौतेले व्यवहार की वजह से यहां के लोग अफसरों और जनप्रतिनिधियों दोनों से बराबर खफा हैं। पुलिया बनाने के लिए ग्रामीणों ने कई बार अफसरों और जनप्रतिनिधियों की परिक्रमा की। सबने आश्वासन तो दिया लेकिन काम कुछ नहीं हुआ। मौजूदा लोकसभा चुनाव में ग्रामीणों ने पुलिया बनने तक किसी भी चुनाव में वोट न डालने का फैसला लिया है।
पढ़ाई से वंचित रह जाते है बच्चे:-
सीधा रास्ता न होने से यहां के बच्चे पढ़ने स्कूल नहीं जा पाते। चौड़ा रास्ता न होने से गांव में अचानक किसी के बीमार होने पर उसे किसी तरह अस्पताल लेकर भागना होता है। एंबुलेंस रास्ता न होने से गांव तक नहीं पहुंच पाती। गांव के विश्राम बताते हैं कि बारिश के दिनों में पानी ज्यादा होने से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। कुछ बच्चे नाव से नाला पार करके जाते हैं। उपदेश कहते हैं कि पुलिया टूटने के बाद स्थायी समस्या हो गई है। अब तो ग्रामीणों को अपनी जान जोखिम में डालकर नाला पार करने की आदत सी हो गई है। अजय कहते हैं कि पुलिया न होने से बच्चे पढ़ने नहीं जा पाते। अफसर और नेताओं ने दिलासा तो दिया लेकिन फिर हमारे गांव की तरफ मुड़कर नहीं देखा। हमको चार किलोमीटर ज्यादा दूरी तय करके करमूपुरवा और झंडी चौराहा होकर निघासन पहुंचना पड़ता है।