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गन्ना किसान हो जाए अलर्ट वरना झेलना पड़ेगा भारी नुकसान, इस वजह के चलते गन्ना शोध परिषद ने किया आगाह।

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गन्ना किसान: मानसून आते ही गन्ने की फसल पर तीन रोगों को खतरा मंडराने लगा है। इसमें पोक्का बोईंग रोग, बैक्टीरियल टॉप रॉट रोग, ग्रासी शूट डिजीज गन्ने के उत्पादन पर असर डालते हैं। इन रोगों की शुरूआत मानसूनी बारिश से ही शुरू हो जाती है। शाहजहांपुर स्थित उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के डायरेक्टर वीके शुक्ल ने यूपी के 45 गन्ना उत्पादक जिलों के किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की है, ताकि वह गन्ने की फसल को लगने वाले तीन रोगों से बचा सकें।

पोक्का बोईंग रोगः

डायरेक्टर वीके शुक्ल ने बताया कि पोक्का बोईग रोग के लक्षण माह जून में सर्वप्रथम शरदकाल या पेड़ी फसल में अच्छे हरे पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता है। इस रोग के स्पष्ट लक्षण विशेष रूप से माह जुलाई से सितम्बर वर्षा काल तक प्रतीत होते हैं। इसके लक्षण अत्याधिक यूरिया डालने के उपरान्त भी अत्याधिक हरी पत्तियों पर दिखाई देता है। रुक-रुक कर वर्षा व धूप के कारण अत्याधिक फैलता है तथा लगातार मूसलाधार वर्षा होने पर इस रोग का आपतन धीरे-धीरे कम हो जाता है। पत्तियों के ऊपरी व निचले भाग पर सिकुड़न के साथ सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। चोटी की कोमल पत्तियां मुरझाकर काली सी पड़ जाती हैं और पत्नी का ऊपरी भाग सड़कर गिर जाता है। ग्रसित अगोला के ठीक नीचे की पोरियों की संख्या अधिक व छोटी हो जाती है। इसके लिए फफूंदीनाशी में से किसी एक का 40 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर दो बार पर्णर्गीय छिड़काव करें।

बैक्टीरियल टॉप रॉट रोगः

बैक्टीरियल टॉप रॉट रोग बैवक्टीरिया जनित रोग है तथा इस रोग का आपतन जून से वर्षा ऋतु के अन्त तक रहता है। प्रारम्भ में पत्नी के मध्यशिरा के सामानान्तर गहरे लाल रंग की धारियां दिखाई देती हैं। इसका संक्रमण होने पर गन्ने के अगोले के बीच की पत्तियां सूखने लगती हैं तथा बाद में पूरा अगोला ही सूख जाता है। पौधे के शिखर कलिका से तने अन्दर से ऊपर से नीचे की ओर सड़ जाते हैं व आसानी से बाहर निकल जाता है। गूदे के सड़ाव से अत्यन्त दुर्गन्ध आती है तथा तरल पदार्थ सा प्रतीत होता है। बताया गया कि कॉपर ऑक्सीवलोराइड 50 डब्ल्यूपी का 02 प्रतिशत, 800 ग्राम फफूंदनाशी तथा स्ट्रेस्टोसाइविलन का 0.01 प्रतिशत, 40 ग्राम दवा का छिड़काव करें।

ग्रासी शूट डिजीजः

ग्रासी शूट डिजीज रोग फाइटोप्लाउमा द्वारा संकमित होता है। तथा इसका प्रभाव वर्षा काल में अधिक होता है। रोगी पौधों की पत्तियों का रंग सफेद हो जाता है। तनों की वृद्धि रुक जाती है। गन्ने बौने और पतले हो जाते हैं तथा पूरा थान झाड़ी नुमा हो जाता है। बताया गया कि ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर दूर नष्ट कर दें। रोग की अधिकता की दशा में वाक (विक्टर) कीट के नियंत्रण के लिए कीटनाशी इमिडाक्लोप्रिड 178 एस.एल. दर 80-100 मिली प्रति एकड़ का 625 लीटर का घोल का छिड़काव करें।

दीप शंकर मिश्र"दीप":- संपादक

दीप शंकर मिश्र"दीप":- संपादक

पत्रकारिता जगत में एक ऐसा नाम जो निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जाना जाता है।

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