लखीमपुर खीरी: लोग भेड़ पालन से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। यहीं वजह है कि गड़रिया समाज आज भी अपने पुस्तैनी व्यवसाय को मजबूती से पकड़े हुए है। युवा भी भेड़ पालन को तरजीह दी रहे हैं और सैकड़ों की संख्या में भेड़ पालकर न केवल अपनी पुस्तैनी परंपरा को बरकरार रखे हुए हैं। बल्कि वह इनसे अच्छी खासी कमाई भी कर रहे हैं। विकासखण्ड निघासन अंतर्गत गाँव पचपेड़ी निवासी रामगुलाम सौ से अधिक भेंड़ पालन कर रखा है। रामगुलाम का कहना है की भेंड़ पालन उनके परिवार का पुश्तेनी काम रहा है, जिसे आज भी वो कर रहे है। पहले के समय मे भेंडो की संख्या हजारों में थी मगर अब भेंडो की संख्या कम हुई है।
इन्ही भेड़ों से कई तरह से लाभ है। इनके बालों को काटकर बेचते हैं। रामगुलाम गडरिया का कहना है कि इनके बालों को 60 से 70 रुपया किलो के भाव में वो बेच लेता है। इनसे कमरी भी बनती हैं। रामगुलाम गड़रिया की मानें तो वह आज भी सौ से दो सौ तक में एक कमरी बेच लेता हैं। दूसरा लाभ यह भी है कि किसान तीन से चार सौ रुपये बीघा की कीमत चुका कर भेड़ों को अपने खेतों में बिठाकर उसकी उर्वरा शक्ति बढ़वाते हैं। इतना ही नहीं लोग भेड़ का मांस भी खाते हैं। एक भेड़ 05 से 10 हजार रुपये तक में बिकता है। रामगुलाम सुबह भेड़ों के झुंड को चराने जाता है व शाम को वापस घर आता है। यह उसकी रोज की दिनचर्या है और इन्ही भेंडो से जो आमदनी होती है उसी से घर का खर्च भी व अन्य खर्च भी चलते है।
यह है मान्यता:-
रामगुलाम का कहना है कि जिस खेत में भेड़ बैठवा दो उसमें जो भी फसल बोओ दोगुनी पैदावार होती है। इसी फायदे से समाज में आज भी खेतों में भेड़ बैठवाने की परंपरा है।