रिपोर्ट:- शरद मिश्रा”शरद”
निघासन(लखीमपुर खीरी): ग्राम पंचायतों में ग्राम प्रधान चुनी गई महिलाओं की शक्ति महज उनके नाम तक ही सीमित है, लेकिन असली प्रधान तो उनके प्रतिनिधि है। अधिकांश ग्राम पंचायतों में तो महिला ग्राम प्रधान को हस्ताक्षर करने तक का भी मौका नहीं दिया जाता। जबकि निघासन ब्लॉक की 65 ग्राम पंचायत में से 33 महिलाएं प्रधान हैं। कमोबेश यही स्थिति आरक्षित सीटों पर जीते पुरुष ग्राम प्रधानों को भी होती है। सरकार प्रयास और आरक्षण की वजह से जिन गाँवो की ग्राम प्रधान महिलाएं हैं। वहां ग्राम प्रधान का पूरा काम उनके पुत्र, देवर, जेठ व ससुर या प्रतिनिधि देखते हैं। चुनाव जीतने के बाद इनकी मोहर डोंगल व पंचायत से जुड़े अभिलेख भी प्रतिनिधि ही संभालते हैं। अधिकांश गांवों में प्रधान के बजाय लोग उनको ही ग्राम प्रधान कहते हैं और समझते हैं। महिला ग्राम प्रधानों के अलावा अनुसूचित जाति या पिछली जाति के अधिकांश ग्राम प्रधानों के भी अपने प्रतिनिधि के पीछे चलना पड़ता है। कई गांव में तो अपने प्रतिष्ठा लगाकर अपने खास को प्रधान बनाने वाले मांगने पर भी उन्हें मोहर, डोंगल व पंचायत से जुड़े महत्वपूर्ण अभिलेख नहीं देते। ग्राम प्रधान के प्रतिनिधि इस कदर दबंगई पर आमादा रहते हैं, कि वह उन मीटिंग को भी अटेंड करते हैं। जहां प्रत्येक दशा में जन प्रतिनिधि का होना आवश्यक होता है। मीटिंग के एजेंट पर भी प्रतिनिधि प्रधान के हस्ताक्षर कर देते हैं। कई गांव में तो ग्राम प्रधान के बजाय बैंकों में ग्राम प्रधान का हस्ताक्षर तक प्रतिनिधि ही करते हैं। सरकार के द्वारा सभी जिलों को शख्त निर्देश दिए गए है की विकास कार्यों संबंधित बैठक में सिर्फ प्रधान ही मौजूद रहेंगे न की उनका कोई प्रतिनिधि।
निघासन ब्लॉक के इन गाँवो में हैं महिला प्रधान
ब्लॉक निघासन के अधिकांश ग्राम पंचायतों में महिलाएं प्रधान हैं। जो घूंघट की आंड में रहती हैं। जिनको प्रधान पद के बारे में भी कुछ पता नहीं है। ब्लॉक निघासन के ग्राम पंचायत बंगलहा कुटी, बंगलहा तकिया, गंगानगर, बरोठा, रकेहटी, मांझा, भैरमपुर, बेलापुरसुआ, कड़िया, मोतीपुर, ढखेरवा खालसा, जसनगर, लालपुर, ग्रांट न०12, सिंगहा कलां, सिंगाही देहात, लुधौरी, खेरहना, खमरिया कोईलार, सहनखेड़ा, बारसोला कलां, सूरतनगर, बथुआ, सिंधौना, रामुआपुर, खैरहनी, बम्हनपुर, मदनापुर, मिर्जागंज, बल्लीपुर, छेदुई पतिया, गंगाबेहड़ ग्राम पंचायतों में महिला प्रधान हैं। लेकिन प्रधानी इनके पति या प्रतिनिधि ही चलाते है। लोंगो का कहना है कि महिला सीट होने के कारण ऐसा किया गया था। लेकिन गाँव कि समस्याएं एवं अनूठा कार्य उनके पति कि ही देखरेख में होता है।